Friday, September 4, 2009

मेरे बाद किधर जायेगी तनहाई

मेरे बाद किधर जायेगी तनहाई
मैं जो मरा तो मर जायेगी तनहाई


मैं जब रो रो के दरिया बन जाऊंगा
उस दिन पार उतर जायेगी तनहाई

तनहाई को घर से रुखसत कर तो दो
सोचो किस के घर जायेगी तनहाई

वीराना हूं आबादी से आया हूं
देखेगी तो डर जायेगी तनहाई

यूं आओ कि पाओं की भी आवाज़ ना हो
शोर हुआ तो मर जायेगी तनहाई

मिले किसी से नज़र तो समझो गज़ल हुई

मिले किसी से नज़र तो समझो गज़ल हुई
रहे न अपनी खबर तो समझो गज़ल हुई

मिला के नज़रों को वो हया से फिर
झुका ले कोई नज़र तो समझो गज़ल हुई

इधर मचल कर उनहें पुकारे जुनूं मेरा
भडक उठे दिल उधर तो समझो गज़ल हुई

उदास बिस्तर की सिलवटे जब तुम्हें चुभें
ना सो सको रात भर तो समझो गज़ल हुई

वो बदगुमां हो तो शेर सूझे ना शायरी
वो महर्बां हो 'ज़फ़र' तो समझो गज़ल हुई

Tuesday, September 1, 2009

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ


कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ

इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ
क्यूँ न ए दोस्त हम जुदा हो जाएँ

तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ

हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तिला हो जाएँ

अब के गर तू मिले तो हम तुझसे
ऐसे लिपटें तेरी क़बा हो जाएँ


बंदगी हमने छोड़ दी फ़राज़
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएँ
(क़बा=ड्रेस)

उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब

उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर वह भी कहां अब पहले जैसी है
भीगे पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग

जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग
एक चेहरे पर कई चेहरे सजा लेते हैं लोग

मिल भी लेते हैं गले से अपने मतलब के लिए
आ पड़े मुश्किल तो नज़रें भी चुरा लेते हैं लोग

है बजा उनकी शिकायत लेकिन इसका क्या इलाज
बिजलियाँ खुद अपने गुलशन पर गिरा लेते हैं लोग

हो खुशी भी उनको हासिल ये ज़रूरी तो नहीं
गम छुपाने के लिए भी मुस्कुरा लेते हैं लोग

ये भी देखा है कि जब आ जाये गैरत का मुकाम
अपनी सूली अपने काँधे पर उठा लेते हैं लोग

वोह दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे

वोह दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझ को भूल के ज़िंदा रहूँ खुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िंदगी बन कर
यह और बात, मेरी ज़िंदगी वफ़ा न करे

यह ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
खुदा किसी से किस्सी को मगर जुदा न करे

सूना है उसको मोहब्बत दुआएं देती है
जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे

बुझा दिया है नसीबों ने मेरे प्यार का चांद
कोई दिया मेरी पलकों पे अब जला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
कतील जान से जाये पर इल्तिजा न करे