लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलम-ए-ना-पायदार में
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
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