Friday, August 28, 2009

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में - बहादुर शाह ज़फर

लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलम-ए-ना-पायदार में

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार
दो आरज़ू में कट गये दो इंतज़ार में

कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिये
दो ग़ज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

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