Friday, August 28, 2009

माँ - निदा फ़ाज़ली


बेसन की सोंधी रोटी पे खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बेसन फुकनी जैसी माँ

बान की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी थकी दोपहरी जैसी माँ

चिडियों कि चहकार गूँजे राधा मोहन अली अली
मुर्गे की आवाज़, घर की कुण्डी जैसी माँ

बीवी बेटी बहन पडोसन थोड़ी सी सब में
दिन भर एक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने एक एलबम में चंचल शोख लड़की सी माँ

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