Tuesday, September 1, 2009

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ


कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही, फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है, तो ज़माने के लिए आ

एक उमर से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
यह आखिरी शमाएं भी बुझाने के लिए आ

1 comment:

Amit said...

रंजिश = मनमुटाव, नाराज़ी
पिन्दार = अभिमान, गर्व, गुरूर / (कल्पना भी)
मरासिम = सम्बन्ध
लज्ज़त-ए-गिरिया = रोने या आंसुओं का आनंद
राहत-ए-जाँ = जाँ / जिंदगी को सुकून देने वाला