Friday, September 4, 2009

मिले किसी से नज़र तो समझो गज़ल हुई

मिले किसी से नज़र तो समझो गज़ल हुई
रहे न अपनी खबर तो समझो गज़ल हुई

मिला के नज़रों को वो हया से फिर
झुका ले कोई नज़र तो समझो गज़ल हुई

इधर मचल कर उनहें पुकारे जुनूं मेरा
भडक उठे दिल उधर तो समझो गज़ल हुई

उदास बिस्तर की सिलवटे जब तुम्हें चुभें
ना सो सको रात भर तो समझो गज़ल हुई

वो बदगुमां हो तो शेर सूझे ना शायरी
वो महर्बां हो 'ज़फ़र' तो समझो गज़ल हुई

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